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Showing posts from July, 2019

स्वामी विवेकानंद

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                                                     स्वामी विवेकानंद                             हम सभी विश्वबंधुत्व की बात सुनते हैं और यह भी जानते हैं कि विभिन्न समाजों में उसका प्रचार करने के लिए कितना उत्साह दिखाया जाता है। इस संदर्भ में एक पुरानी कहानी है। भारतवर्ष में शराब पीना बहुत बुरा माना जाता है। दो भाई थे। एक रात उन दोनों ने छिपकर शराब पीने का विचार किया। बगल के कमरे में उनके चाचा सो रहे थे, जो कि एक बड़े ही सदाचारी व्यक्ति थे। इसीलिए शराब पीना शुरु करने के पहले दोनों ने मिलकर निर्णय लिया, 'हम लोगों को जरा भी आवाज नहीं करनी है, नहीं तो चाचाजी जाग जाएंगे।                      वे लोग शराब पीते हुए बार-बार कहते जा रहे थे, 'चुप रहो, नहीं तो चाचाजी जाग जाएंगे। इस प्रकार वे एक-दूसरे को चुप कराते रहे। धीरे-धीरे जब उनकी आवाज बढ़ी, तो चाचाजी की नींद खुल गई। वे उस कमरे में आए और उन्होंने सब कुछ देख लिया। हम लोग भी ठीक इन्हीं मतवालों की तरह ही 'विश्व बन्धुत्व ह-कहकर शोर मचाते रहते हैं। कहते हैं, 'हम सभी समान हैं, इसीलिए हमें एक सम्प्रदाय के रूप में सं

कौन सा देश कब आजाद हुआ

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          कौन देश कब आजाद हुआ 1.जापान कब आज़ाद हुआ? उतर. 660 ईसा पूर्व 2.चीन कब आज़ाद हुआ? उतर. 221 ईसा पूर्व 3. सैन मारिनो कब आज़ाद हुआ? उतर. 301 सीई 4. फ्रांस कब आज़ाद हुआ? उतर. 843 सीई 5. ऑस्ट्रिया कब आज़ाद हुआ? उतर. 976 सीई 6. डेनमार्क कब आज़ाद हुआ? उतर. 10 वीं सदी के सीई 7.हंगरी कब आज़ाद हुआ? उतर. 1001 8. पुर्तगाल कब आज़ाद हुआ? उतर. 1143 9.मंगोलिया  कब आज़ाद हुआ? उतर. 1206 10.थाईलैंड कब आज़ाद हुआ? उतर. 1238 1 1.अंडोरा कब आज़ाद हुआ? उतर. 1278 12. स्विट्जरलैंड कब आज़ाद हुआ? उतर. 1 अगस्त, 1291 13. मोनाको कब आज़ाद हुआ? उतर. 1419 14. स्पेन कब आज़ाद हुआ? उतर. 15 वीं सदी 15. ईरान कब आज़ाद हुआ? उतर. 1502 16. स्वीडन कब आज़ाद हुआ? उतर. 6 जून, 1523 17. नीदरलैंड कब आज़ाद हुआ? उतर. 23 जनवरी, 1579 18.ओमान कब आज़ाद हुआ? उतर. 1650 19. यूनाइटेड किंगडम कब आज़ाद हुआ? उतर. 1 मई, 1707 20.लिकटेंस्टीन कब आज़ाद हुआ? उतर. 23 जनवरी, 1719 21.नेपाल कब आज़ाद हुआ? उतर. 1768 22. संयुक्त राज्य अमेरिका कब आज़ाद हुआ? उतर. 4 जुलाई, 1776 23. हैती कब आज़ाद हुआ? उतर. 1 जनवरी, 1804 24.कोल

शिष्य शिक्षा और शिक्षक का संबंध

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                   शिष्य शिक्षा और शिक्षक का संबंध                               कहते हैं ना कि दुनिया में रंगों की कमी नहीं, कमी तो हममें है कि हम कम  रंगों को जानते व पहचानते हैं। उसी भांति ए.के. बक्शी सर को भी दुनिया बहुरंगी, बहुआयामी सोच रखने वाले व सफल व्यक्ति के नाम से पहचानती है। यह पी.डी.एम यूनिवर्सिटी हरियाणा के कुलपति है, दो बार स्वर्ण पदक विजेता रहे  बक्सी सर का अध्ययन क्षेत्र रसायन विज्ञान रहा है लेकिन कुछ सालों से यह शिक्षा के पठन-पाठन में मौजूद कमियों को दूर करने का प्रयत्न कर रहे हैं। काफी शोध व अध्ययन के बाद यह ई लर्निंग व मूक्स जैसी तकनीक को शिक्षा को और बेहतर बनाने में शामिल करना शामिल कर रहे हैं।           THIS IS THE BEST PLATFORM FOR STUDY                 बक्शी सर की शिष्या डॉ. विमल रॉर जी का कहना है कि 'शिक्षा हर भारतीय के हाथों तक पहुंचे'। इसको ध्यान में रखते हुए बक्शी सर इसमें आने वाली चुनौतियों और समस्याओं को भी बताएं कि कैसे भारत की तकनीकी, संचार, नेटवर्क कमजोर है आज भी भारत की इंटरनेट स्पीड सबसे 7- 8mbps है आज भी उन पिछड़े व निम्न तबके के

जीवन के कुछ संघर्ष

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                                    जीवन  के कुछ संघर्ष                                  हमारे गुरु डॉक्टर अतुल मिश्र सर के विद्यार्थी तन्मय जी जिनके पास दो प्यारी - प्यारी आंखें होने के बाद भी वह इस खूबसूरत व रंगीन संसार को नहीं देख पाते उनके कुछ अपने अनुभव यह है कि हमें हमेशा खुश रहना चाहिए। अगर हमारे पास कुछ थोड़ा ही है तो उसमें भी हमें संतोष करना चाहिए।                       हमारे पास सब कुछ होते हुए भी हमें लगता है कि हमारे पास कुछ भी नहीं है और जिनका अंग - भंग, विच्छिन्न रहता है वह भी सोचते हैं कि हमारे पास कुछ भी नहीं है और हम कुछ भी नही कर सकते अपने जीवन से हारा हुआ महसुस करने लगते है लेकिन उन्हीं में से कुछ तन्मय जी जैसे लोग होते हैं जो अपनी बिच्छिन्नता को ही अपना हथियार बना लेते हैं और आगे बढ़ सबके लिए मिसाल भी बन जाते हैं।                                   वहां मौजूद कुछ विद्यार्थी गढ को हो सकता है यह लगा हो कि तन्मय जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे हमारा जीवन प्रभावित हो लेकिन आपको बता दूं मेरे दोस्त कि उनकी उपस्थिति ही उनके हौसले और आत्मविश्वास को इंगित कर रहा था जो कि

खुद का मूल्यांकन

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                                              खुद का मूल्यांकन              परीक्षा के दौरान हम एक अजब - गजब मानसिकता से गुजर रहे होते हैं। यह समय हमें बहुत कठिन व विकराल लगता है ऐसा लगता है कि किसी भी तरह इससे जल्दी से जल्दी मुक्ति पा लिया जाए। मुक्ति तो मिलेगी ही इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको यह मुक्ति सफलता के साथ मिलती है या अर्ध्द सफलता के साथ या फिर असफलता के साथ। तो आइए हम यहां यह जानने का प्रयत्न करेंगे कि हमें सफलता किस रूप में मिल सकती है।                                 परीक्षा देने के बाद हम यह धारणा बना लेते हैं कि हमें जो करना था, लिखना था हमने लिख दिया अब यह परीक्षक की इच्छा के ऊपर है कि वह हमें क्या समझ कर कितने नंबर देता है। इस बारे में हम अब ज्यादा कुछ नहीं कर सकते जो भी करना है वह परीक्षक को ही करना है। लेकिन क्या सचमुच केवल ऐसा ही है कि जो कुछ करना है अब केवल परीक्षक को ही करना है? अभी तक शायद आप ऐसा ही समझते आये होंगे लेकिन अब ऐसा न समझे।                         अभी तक हमारा ज्यादातर मूल्यांकन दूसरों के द्वारा किया जात