लोकपाल बनाम भारत - LokPal v/s Bharat
लोकपाल बनाम भारत
लोकपाल शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के लोक व पाल से हुई है, लोक यानि लोग, पाल यानी रक्षक अर्थात लोगों का रक्षक। विश्व में लोकपाल का पद सबसे पहले स्वीडन में आया। लोकपाल समिति में अध्यक्ष के अलावा आठ अन्य सदस्य भी होंगे। समिति के न्यायिक सदस्यों में जस्टिस पि. भोंषले, जस्टिस प्रदीप मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी का नाम आता है। इनके अलावा चार गैर न्यायिक सदस्य भी शामिल है, जिसमें सशस्त्र सीमा बल की पूर्व प्रमुख अर्चना राम सुंदरम, महाराष्ट्र के पूर्व महासचिव दिनेश कुमार जैन, महेंद्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम शामिल है इतने लोगों की यह समिति मिलकर अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने तो साकार करने में अहम भूमिका निभाएंगे।
साथ ही इनकी योग्यता की बात की जाय तो ये 45 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हो, ये भारतीय नागरिक हो, ये सर्वोच्च न्यायालय के जज बनने की योग्यता रखते हों, साथ ही ये राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी से बर्खास्त न किए गए हो।लोकपाल का चुनाव प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक चयन समिति करती है, जिसके सदस्यों में लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुशंसा पर नामित सुप्रीम कोर्ट के एक जज व राष्ट्रपति द्वारा नामित एक विधिवेत्ता भी इसके सदस्य होते हैं। उपयुक्त सदस्यों की समिति द्वारा केवल नाम सुझाए जाते हैं कि कौन - कौन लोग लोकपाल के सदस्य होंगे उससे बाद इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
ज्ञातव्य हो कि लोकपाल के क्षेत्राधिकार व जांच के दायरे में न्यायालय व सेनाओं को नहीं शामिल किया गया है। इन दोनों को छोड़कर लोकपाल पूरे भारत के सरकारी व गैर सरकारी व अन्य सदस्यों पर जांच कर सकता है। कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लोक सेवकों के प्रति लोकपाल से शिकायत कर सकता है। लोक सेवकों के प्रति शिकायत सही होने पर उस पर कार्यवाही की जाएगी, लेकिन याद रहे शिकायत गलत पाए जाने पर आप दंडित भी हो सकते हैं। ज्यादातर मामलों में शिकायत गलत पाए जाने पर शिकायत वही निरस्त कर दी जाएगी। इसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ दोषी पाए जाने पर 2 से 10 साल तक की जेल हो सकती है।
निष्कर्षतः 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद लोकपाल नियुक्ति की बात की गई लेकिन प्रतिपक्ष के नेता द्वारा इसमें रुचि न दिखाने से लोकपाल की नियुक्ति न की जा सकी। कार्यकाल समाप्ति की दशा में मोदी सरकार ने अपनी ईमानदारी व कर्मठ होने का प्रमाण देते हुए सुप्रीम कोर्ट के रायानुसार प्रतिपक्ष नेता के न होते हुए भी 19 मार्च 2019 को एक लोकपाल का गठन कर डाला। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार राज्यों में लोकायुक्त होता है जिनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है या 70 वर्ष की आयु दोनों में से जो पूरा हो जाए। इन लोकपालों का वेतन संचित निधि से दिया जाएगा, जिसमें अध्यक्ष को 2.80 लाख व अन्य सदस्यों को 2.50 लाख रूपये वेतन दिए जाएंगे। अतः अब भारत सरकार को, जनता और लोकपाल की सहायता से भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में सफलता मिलेगी, जो मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में सामिल होगी।
आखिरकार मिल ही गया भारतीय खोजी
रूपी सदनों को उनका कुम्भ में बिछड़ा हुआ लोकपाल पिनाकी चंद्र घोष जो
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके है। 66 वर्षीय पिनाकी चंद्र घोष का जन्म 1952 में हुआ, ये कोलकाता से कानून संबंधी पढ़ाई किए थे, ये 2017 में ही सर्वोच्च न्यायालय से सेवा मुक्त हो गए इसके पहले यह कोलकाता वह आंध्र
प्रदेश के उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश भी रहे। पी.सी. घोष ने अपने कार्यकाल
के दौरान कई अन्य महत्वपूर्ण फैसले दिए, आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहते हुए, ए. आई. जी. एम. के पूर्व सचिव शशिकला पर
भ्रष्टाचार के मामले में सजा सुनाये थे, वहीं सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होने के दौरान जल्लीकट्टु और
पशुदौड़ की प्रथाओं के खिलाफ भी फैसले सुनाए थे।
लोकपाल शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के लोक व पाल से हुई है, लोक यानि लोग, पाल यानी रक्षक अर्थात लोगों का रक्षक। विश्व में लोकपाल का पद सबसे पहले स्वीडन में आया। लोकपाल समिति में अध्यक्ष के अलावा आठ अन्य सदस्य भी होंगे। समिति के न्यायिक सदस्यों में जस्टिस पि. भोंषले, जस्टिस प्रदीप मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी का नाम आता है। इनके अलावा चार गैर न्यायिक सदस्य भी शामिल है, जिसमें सशस्त्र सीमा बल की पूर्व प्रमुख अर्चना राम सुंदरम, महाराष्ट्र के पूर्व महासचिव दिनेश कुमार जैन, महेंद्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम शामिल है इतने लोगों की यह समिति मिलकर अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने तो साकार करने में अहम भूमिका निभाएंगे।
लोकपाल का दायरा काफी
व्यापक है यह सरकारी कर्मचारियों, शासन व प्रशासन और कुछ मामलों में प्रधानमंत्री
के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच कर सकता है। प्रधानमंत्री
सहित अन्य मंत्रियों के पद के दुरुपयोग के खिलाफ स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच कर
सकता है और उन्हें दंडित भी करा सकता है। इसका गठन मुख्य रूप से भ्रष्टाचार को रोकने
व उनको दंडित करने के लिए किया गया है।
लोकपाल के गठन की बात की जाए तो लोकपाल व
लोकायुक्त अधिनियम 2013 में यह प्रावधान
है कि लोकपाल का एक अध्यक्ष होगा जो भारत के पूर्व न्यायाधिश या सर्वोच्च न्यायालय
का सेवा मुक्त न्यायधीश हो सकता है। इसमें अध्यक्ष के अलावा अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं
जिनमें आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से व आधे सदस्य एस.सी., एस. टी., पिछड़ी जाति,
अल्पसंख्यकों व महिलाओं में से होने चाहिए। ऐसे
सदस्य लोकपाल के सदस्य नहीं हो सकते जो संसद सदस्य या केंद्र शासित प्रदेश की
विधानसभा के सदस्य हो। इनके अलावा नैतिक भ्रष्टाचार में पाए गए दोषी व पंचायत व
निगम का सदस्य भी लोकपाल के सदस्य नहीं हो सकते।
साथ ही इनकी योग्यता की बात की जाय तो ये 45 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हो, ये भारतीय नागरिक हो, ये सर्वोच्च न्यायालय के जज बनने की योग्यता रखते हों, साथ ही ये राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी से बर्खास्त न किए गए हो।लोकपाल का चुनाव प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक चयन समिति करती है, जिसके सदस्यों में लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुशंसा पर नामित सुप्रीम कोर्ट के एक जज व राष्ट्रपति द्वारा नामित एक विधिवेत्ता भी इसके सदस्य होते हैं। उपयुक्त सदस्यों की समिति द्वारा केवल नाम सुझाए जाते हैं कि कौन - कौन लोग लोकपाल के सदस्य होंगे उससे बाद इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
ज्ञातव्य हो कि लोकपाल के क्षेत्राधिकार व जांच के दायरे में न्यायालय व सेनाओं को नहीं शामिल किया गया है। इन दोनों को छोड़कर लोकपाल पूरे भारत के सरकारी व गैर सरकारी व अन्य सदस्यों पर जांच कर सकता है। कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लोक सेवकों के प्रति लोकपाल से शिकायत कर सकता है। लोक सेवकों के प्रति शिकायत सही होने पर उस पर कार्यवाही की जाएगी, लेकिन याद रहे शिकायत गलत पाए जाने पर आप दंडित भी हो सकते हैं। ज्यादातर मामलों में शिकायत गलत पाए जाने पर शिकायत वही निरस्त कर दी जाएगी। इसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ दोषी पाए जाने पर 2 से 10 साल तक की जेल हो सकती है।
पहली बार लोकपाल शब्द का प्रयोग
स्कैंडिनेवियन देशों द्वारा किया गया। वहीं भारत में एल. ए. सिंघवी द्वारा लोकपाल शब्द का प्रयोग किया गया। 60 के दशक से ही भारत में लोकपाल का बिल सदनों
में लगातार लाया जा रहा था। पहली बार इसे चौथी लोकसभा 1968 में लोकसभा में पेश किया गया, उसके बाद साल 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998,
2001 में भी पेश किया गया,
लेकिन सदन के सदस्यो द्वारा इस बिल में कोई
दिलचस्पी न लेने की वजह से यह बिल पास होने से वंचित रह जाता था। इसके बाद सरकार
अगस्त 2011 में एक नया लोकपाल बिल
लोकसभा में लायी। कुछ संशोधनों के बाद 22 दिसंबर 2011 में लोकपाल और
लोकायुक्त बिल 2011 के नाम से
लोकसभा में पेश हुआ, इसके बाद 27 दिसम्बर को यह बिल लोकसभा में पारित हो गया,
इसके बाद राज्यसभा में भेजा गया तभी अचानक
राज्यसभा निश्चित काल के लिए स्थगित हो गई एक बार फिर यह बिल पास होने से वंचित रह
गया। वस्तुतः मई 2012 में राज्यसभा ने इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजा, कमेटी नवंबर 2012 को अपनी रिपोर्ट
सौंपी उसके बाद सरकार ने 16 में से 14 मांगों को मान लिया, राज्यसभा ने बिल पास कर लोकसभा को भेज दिया और अंततः 8 दिसंबर 2013 को बिल पास हो गया और 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति
की मंजूरी भी मिल गई।
निष्कर्षतः 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद लोकपाल नियुक्ति की बात की गई लेकिन प्रतिपक्ष के नेता द्वारा इसमें रुचि न दिखाने से लोकपाल की नियुक्ति न की जा सकी। कार्यकाल समाप्ति की दशा में मोदी सरकार ने अपनी ईमानदारी व कर्मठ होने का प्रमाण देते हुए सुप्रीम कोर्ट के रायानुसार प्रतिपक्ष नेता के न होते हुए भी 19 मार्च 2019 को एक लोकपाल का गठन कर डाला। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार राज्यों में लोकायुक्त होता है जिनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है या 70 वर्ष की आयु दोनों में से जो पूरा हो जाए। इन लोकपालों का वेतन संचित निधि से दिया जाएगा, जिसमें अध्यक्ष को 2.80 लाख व अन्य सदस्यों को 2.50 लाख रूपये वेतन दिए जाएंगे। अतः अब भारत सरकार को, जनता और लोकपाल की सहायता से भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में सफलता मिलेगी, जो मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में सामिल होगी।
आपका अपना साथी
अमित बाबू
प्रयागराज
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