शुन्य से शिखर तक




         शुन्य से शिखर तक

         हम बचपन से यही सोचते हैं कि आखिर कोई चाय बेचने वाला, अखबर बेचने वाला, मोची, कंडक्टर, श्रमिक अचानक इतने महान कैसे बन जाते हैं कि उन्हें युगों- युगों तक याद रखा जाता है, तो मैंने देखा कि यह अपने कर्मो व अपने लक्ष्यो के प्रति बड़े ईमानदार होते हैं यह लोग अपने समुदाय, समुह, गरीबी का बड़ी गहराई से अध्ययन किए रहते हैं क्योंकि यह कहीं ना कहीं इसी वर्ग से आते हैं और इन्हें यही चीज इनके लक्ष्य की ओर अग्रसर करने में बड़ी भूमिका निभाती है ये लोग सफलता प्राप्ति से पहले ही समाज सेवा और कल्याणकारी कार्यो में लिप्त रहते है।

                आज हम ऐसे ही एक ईमानदार कर्मठ व्यक्ति की बात करेंगे जिनका नाम राम नाईक जी है जो महाराष्ट्र के रहने वाले हैं यह हमारे राज्य उत्तर- प्रदेश के २४वें राज्यपाल भी हैं इनके जीवन में बहुत सारे उतार चढ़ाव भी आए, जिनके कुछ बिंदुओं पर हम प्रकाश डालेंगे जैसे इनका जीवन अभावो में बीता, इसी से संबंधित कुछ तथ्यों पर प्रकाश डालेंगे।
            
        इनका जन्म 16 अप्रैल 1934 में मुंबई में हुआ यह अपने पिता और अपने आर्थिक उत्थान के लिए घर-घर जाकर अखबार बांटा करते थे यह अपना गुरू अपने पिता को ही मानते थे क्योंकि जिस स्कूल में यह पढ़ते थे उसी स्कूल में इनके पिता अध्यापक प्राचार्य के रूप में नियुक्त थे जो सख्त नियमों से स्कूल का संचालन करते थे जैसे समय पर स्कूल आना, प्रतिदिन ड्रेस में आना, साफ सफाई रखना आदि नियमों से स्कूल संचालन कार्य करते थे मानो पूरा माहौल गुरुकुल जैसा हो।

               कुछ समय बाद राम नाईक सामाजिक कार्यों में लग गए इन्हें समाज से स्नेह था। समय बीतता रहा इनकी शादी कुंदा नामक एक लड़की से हो गई जो बाद में आंगनबाड़ी के शिक्षक के रूप में नियुक्त हुई। यह अपने पति की पूरी निष्ठा लगन से साथ दी, नायक जी के सारे कार्य में कदम से कदम मिलाकर चलेंगे और बहुत मदद की और कहा भी जाता है कि एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है जो की कुंदा जी थी। राम नाईक जी अपनी बहुत सारी सफलता का श्रेय कुंदा जी को भी देते हैं।
                 


               शुरुआती दौर में राम नईक जी 1989 से 2004 तक सांसद रहे इसी के दौरान पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री 1999 से 2004 तक रहे, इस समय अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री के पद पर आसीन थे और फिर नईक जी 2014 में यूपी के राज्यपाल के रूप में राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद ग्रहण किये। इस दौरान यह कैंसर जैसे गंभीर रोग से पीड़ित होने के बाद भी समाज सेवा देश सेवा जैसे कार्यों में लिप्त रहे यह आज भी रात 11:30 बजे सोते है और सुबह 05:30 बजे जग जाते है।

              यह प्रारम्भ काल से ही किसी के प्रति भेदभाव नहीं रखते थे इसका उदाहरण हमें तब मिलता है जब यह कुछ कुष्ठ रोग जैसे संक्रमित रोग से पीड़ित व्यक्तियों की सेवा सुश्रुआ किया करते थे यह वही राम नईक जी है जिनके कहने पर सदन में बहुत सारे बदलाव हुए। एक बार इन्होंने अंबेडकर के आधे नाम का मुद्दा उठाया इन्होंने कहा कि अंबेडकर का पूरा नाम लिखा व पढा जाना चाहिए और ऐसा ही हुआ।

             इनका सबसे रोचक व्याख्यान इनकी पुस्तक चरैवेति- चरैवेति में मिलता है। चरैवेति चरैवेति का अर्थ चलते रहो चलते रहो चलते रहो है उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति बैठा है समझो उसका भाग्य बैठ गया है, जो खड़ा है समझो उसका भाग्य खड़ा है, जो व्यक्ति  सोया है समझो उसका भाग्य भी सो गया है लेकिन जो चलता रहता है उसका भाग्य भी सदैव चलता है।

                वस्तुतः अगर आप चाहते हैं कि कुछ दूर के लोग आपको याद रखें तो आप एक घर बनाएं, अगर आप चाहते हैं कि आपको दूरदराज के लोग याद रखें तो आप एक महल बनवाए लेकिन अगर आप चाहते हैं कि लोग आपको युगों युगों तक याद रखें तो आप एक किताब लिखे। चरैवेति चरैवेति में नईक जी ने बड़ी रोचक घटनाओं का उल्लेख किए हैं जो एक प्रेरणा स्रोत बन सकती है।

              निष्कर्षतः यदि हम अपने जीवन में बड़ा बदलाव चाहते हैं तो हमें उनका अध्ययन करना चाहिए जिन्होंने अपने जीवन में बड़े बदलाव किये है और अपने समाज में कल्याणकारी कार्य किए हैं। हमें महापुरुषों की जीवनियॉ पढनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि कोई आम आदमी इतना मुल्यवान कैसे बन जाता है आखिर क्या है उसके पास जो हमारे पास नहीं है तो हमें तीन चार चीजें मिलती है सैय्यम साहस और संघर्ष,सबके बारे में अध्ययन के बाद हम यही पाते हैं कि वह बहुत साहसी और मेहनती थे इसलिए उन्हें शून्य से शिखर तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।

आपका अपना साथी
अमित बाबू
प्रयागराज

                                             
         



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