खुद का मूल्यांकन

         
       
                           खुद का मूल्यांकन 

            परीक्षा के दौरान हम एक अजब - गजब मानसिकता से गुजर रहे होते हैं। यह समय हमें बहुत कठिन व विकराल लगता है ऐसा लगता है कि किसी भी तरह इससे जल्दी से जल्दी मुक्ति पा लिया जाए। मुक्ति तो मिलेगी ही इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको यह मुक्ति सफलता के साथ मिलती है या अर्ध्द सफलता के साथ या फिर असफलता के साथ। तो आइए हम यहां यह जानने का प्रयत्न करेंगे कि हमें सफलता किस रूप में मिल सकती है।
                 

              परीक्षा देने के बाद हम यह धारणा बना लेते हैं कि हमें जो करना था, लिखना था हमने लिख दिया अब यह परीक्षक की इच्छा के ऊपर है कि वह हमें क्या समझ कर कितने नंबर देता है। इस बारे में हम अब ज्यादा कुछ नहीं कर सकते जो भी करना है वह परीक्षक को ही करना है। लेकिन क्या सचमुच केवल ऐसा ही है कि जो कुछ करना है अब केवल परीक्षक को ही करना है? अभी तक शायद आप ऐसा ही समझते आये होंगे लेकिन अब ऐसा न समझे।
         

              अभी तक हमारा ज्यादातर मूल्यांकन दूसरों के द्वारा किया जाता रहा है। हम क्या हैं, कैसे हैं और क्यों हैं, इसके बारे में अक्सर हमें अन्य लोग बताते रहते हैं। ये शिक्षक, माता-पिता, दोस्त, रिश्तेदार आदि हैं जो आपको समय-समय पर तनाव और तनाव रहित खुराक देते रहते हैं। वहीं आपको बौद्धिक क्षमताओं से परिपूर्ण गुरु शिक्षक मिल जाते हैं तो आपको हमेशा तनाव से दूर रखते हैं।
               

               लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर हम भी तो स्वयं का मूल्यांकन करके सही गलत कुछ कुछ भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि हम कैसे हैं, क्यों हैं। हो सकता है कि हमारा यह मूल्यांकन पूरी तरह सही न हो, क्योंकि इस मूल्यांकन में हम खुद शामिल रहते हैं और अपने प्रति तटस्थ होना बड़ा कठिन होता है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें स्वयं का मूल्यांकन स्वयं भी करना चाहिए। हमारे ग्रंथों में मनुष्य के जो नित्य - कर्म बताए गए हैं उनमें एक कर्म ' स्वाध्याय ' भी है। स्वाध्याय यानी स्वयं का अध्ययन करना। यह स्वयं का अध्यन करना ही स्वयं का मूल्यांकन करना है।
               

               सामान्यतः हम कोई भी परीक्षा देते हैं जिस दिन हम परीक्षा देते हैं उसी दिन दी गई परीक्षा को हमेशा - हमेशा के लिए भूल जाते हैं। केवल एक ही बात याद रहती है कि आप किस श्रेणी से पास हुए, कितना नंबर पाए आदि-आदि। लेकिन अभी तक मुझे ऐसा कोई सच्चा प्रतिभागी नहीं मिला जो अपनी दी गई परीक्षा के बारे में विस्तार से पूरा लेखा-जोखा रखें, ताकि वह लेखा - जोखा उसके आने वाली परीक्षाओं में मार्गदर्शक का कार्य कर सकें।
             

                हम परीक्षा देते हैं, भूल जाते हैं और अपनी आने वाली परीक्षा की तैयारी में लग जाते हैं। जैसी हमारी तैयारी होती है उसी के अनुकूल हमारे परिणाम भी होते हैं।लेकिन इसके साथ हम एक बड़ी भूल यह कर रहे होते हैं कि अपने पिछले अनुभवों से लाभ उठाने से स्वयं को वंचित कर देते हैं। ज्ञातव्य हो कि आपका अपना अनुभव आपके जीवन की सबसे कीमती और महत्वपूर्ण पोथी होती है।
                 

                जीवन में वे लोग निरंतर सफलता की ऊंचाइयों पर चढ़ते गए हैं जो अपने हर अनुभव से कुछ न कुछ सीखते हैं और अपनी हर असफलता को अपने भविष्य की सफलता का आधार बनाते हैं तो भला हम इस सिद्धांत को अपनी परीक्षा पर क्यों न लागू करें।
                 

               आप परीक्षा में कितने भी अच्छे क्यों न लिखें हो, आपको कितने भी अंक क्यों न मिले हो लेकिन मेरे प्यारे प्रतिभागियों आप सदैव यह मान कर चलिए कि उसमें और अधिक अंक लाने की संभावना शेष थी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कटहल का फल जब यह सोच
लेता है कि वह पक गया है तब वह जमीन पर गिर कर सड़ने लगता है। यही बात हर फल पर लागू होती है। जब तक वह फल कच्चा है तब तक वह बढ़ता रहता है। फल स्वयं को पका मानने के बाद अपनी उन्नती रोक देता है। ठीक इसी प्रकार जो स्वयं को कच्चा मान कर चलते हैं वे ही हमेशा उन्नति करते हैं, अपना मानदंड स्थापित करते हैं।
               

              वस्तुतः ऐसा तभी संभव है जब हम अपने अनुभवों का एक ऐसा लेखा-जोखा तैयार करें अपने स्वयं का ऐसा मूल्यांकन करें जो हमें भविष्य में राह दिखा सके।
             

              तो आइए मैं कुछ ऐसे ही बिंदुओं की ओर आपका ध्यानाकर्षित करता हूँ जिनके आधार पर आप अपनी परीक्षा के दौरान के अनुभवों को लिख सकते हैं। यह जरूरी है कि परीक्षा समाप्ति के तुरंत बाद इन अनुभवों को लिख ले ताकि आपकी स्मृति पर धूल न जमने पाए। इसके अंतर्गत आप परीक्षा शुरू होने के एक माह पूर्व से या प्रवेश पत्र प्राप्ति के समय से परीक्षा समाप्ति तक की अपनी मानसिकता के बारे में लिखना चाहिए। आप यह जरूर लिखने की कोशिश करे कि परीक्षा से पहले आपकी मानसिकता क्या थी? जैसे क्या आप को परीक्षा से डर लग रहा था? क्या आप में आत्मविश्वास था? क्या आप एकदम सामान्य स्थिति में थे? आदि - आदि।
                 

               इसके बाद आप पूर्ण कोशिश करे कि आप हर प्रश्न पत्र के आधार पर अपने मनोविज्ञान को लिखें। उदाहरण के लिए जब आपको राजनीतिक विज्ञान का पेपर देना था तब आप कैसा महसूस कर रहे थे? आपको या हमें लगता था कि प्रश्न पत्र कैसा भी आए हम हल कर लेंगे। आपको लगता था कि कहीं ऐसा न हो कि पेपर कठिन आ जाए आदि-आदि।
           

              इसी के दूसरे भाग के अंतर्गत आपको यह भी लिखना चाहिए कि पेपर देने के बाद आपको कैसा लगा। आप जिन बातों को लेकर डरे हुए थे क्या वे सच निकली, क्या वैसी ही निकली जैसा आप सोच रहे थे। और यदि ऐसा नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ? इन सारी बातों को आप जरूर लिखें।


 तैयारी का स्तर - परीक्षा के बाद आप अपने एक पेपर की तैयारी के स्तर के बारे में लिखिए। उदाहरण के लिए राजनीतिक विज्ञान के पूरे पाठ्यक्रम में से आपने कितने प्रतिशत की तैयारी अच्छी तरह से की थी-
>कितने प्रतिशत की तैयारी बहुत अच्छी तरह से की थी-
>कितने प्रतिशत की तैयारी समान्य स्तर की थी-
>कितने प्रतिशत को आप ने बिलकुल छोड़ दिया था-
>आप यह भी लिखे कि आपने इस पेपर की तैयारी किन - किन किताबों से की थी-
>कितने किताबों का नोट्स बनाये थे-
>कितनों को समझा था-
>कितनों को रटा था-
>यदि कुछ छोड़ दिया तो क्यों छोड़ा था-
>कुछ पाठ्यक्रम को छोड़ने के कारण आपको कितना खामियाजा भुगतना पड़ा?


 पेपर कैसे बने - आप यह जरूर लिखें की पूरा पेपर कैसा बना? क्या आपकी उम्मीद से अनुकूल था, यदि नहीं था तो क्यों नहीं था? इसके अंतर्गत आपको यह भी लिखना चाहिए कि यदि आपने क्या किया होता, तो यह प्रश्नपत्र और भी अच्छा बना होता। इस वाक्य को लिखने के बाद उसे रेखांकित अवश्य कर दें, क्योंकि आपका यह निष्कर्ष आपके अच्छे परिणामों का कारण बन सकता है।
             

              आप अपने मूल्यांकन में यह लिखे कि आपका उत्तर कितने प्रतिशत बिल्कुल सही था, कितने प्रतिशत गलत हो गया। क्या सही उत्तरों पर आपकी पूरी पकड़ थी? और नहीं थी तो क्यों नहीं थी? समय की कमी के कारण या जल्दबाजी में या भूल जाने के कारण कौन सी वे महत्वपूर्ण बातें लिखने से रह गई जो आपके उत्तर को और भी अच्छा बना सकती थी।
         

             इसी प्रकार आप अपने प्रश्नों का अच्छी तरह मूल्यांकन करके अपने प्रश्नों को अपनी तरफ से अंक भी दे दे कि आपको कितने अंक मिलने चाहिए? जब अंकसूची आए तो तब आप इसे उससे मिलाइए कि नंबरों में कितना अंतर है, अगर अंतर है तो सोचिए कि क्यों अंतर है?


सिख और संकल्प- अब पूरे प्रश्न पत्र का विस्तार से मूल्यांकन करने के बाद आप उन बिंदुओं को लिखिए, जिन्हें आपको भविष्य में सुधारना है। जैसे-
>अब मैं वर्ष भर लगातार पढ़ाई करूंगा।
>कुछ प्रश्नों को पहले से लिखकर अभ्यास करूंगा।
>अपने लिखने की गति बढ़ाऊंगा।
>प्रश्नपत्र को हल करने से पहले उसे अच्छी तरह पढूंगा।
>प्रश्नपत्र पाते ही निराश और बेचैन नहीं होऊंगा।
>पाठ्यक्रम को अधूरा नहीं छोडूंगा आदि-आदि।

           
 
                निष्कर्षतः यदि आपने यह सब कुछ लिखकर रख लिया और आने वाले वर्षों में यदि आप बीच-बीच में इसे पलटते रहे तो यकिन मानिए निश्चित ही आपके
बिते हुए वर्ष से आने वाला वर्ष बेहतर होगा। आप अपने पढ़ाई व लेखन प्रश्नपत्रों को हल करने की क्षमता में एक अद्भुत परिवर्तन देखेंगे। हर प्रश्नपत्र को हल करते समय आपको लगेगा कि हर उत्तर मेरे सामने हैं। आपके चेहरे पर अन्य विद्यार्थियों की तुलना में एक अलग चमक होगी।



 आपका अपना साथी
अमित बाबू
प्रयागराज

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