स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद
वे लोग शराब पीते हुए बार-बार कहते जा रहे थे, 'चुप रहो, नहीं तो चाचाजी जाग जाएंगे। इस प्रकार वे एक-दूसरे को चुप कराते रहे। धीरे-धीरे जब उनकी आवाज बढ़ी, तो चाचाजी की नींद खुल गई। वे उस कमरे में आए और उन्होंने सब कुछ देख लिया। हम लोग भी ठीक इन्हीं मतवालों की तरह ही 'विश्व बन्धुत्व ह-कहकर शोर मचाते रहते हैं। कहते हैं, 'हम सभी समान हैं, इसीलिए हमें एक सम्प्रदाय के रूप में संगठित हो जाना चाहिए। परन्तु ज्योंहि तुमने सम्प्रदाय का गठन किया, त्योंहि तुम समता के विरोधी हो जाते हो; और तुम्हारे लिए समता का कोई महत्व नहीं रह जाता।
हम सभी विश्वबंधुत्व की बात सुनते हैं और यह भी जानते हैं कि विभिन्न समाजों में उसका प्रचार करने के लिए कितना उत्साह दिखाया जाता है। इस संदर्भ में एक पुरानी कहानी है। भारतवर्ष में शराब पीना बहुत बुरा माना जाता है। दो भाई थे। एक रात उन दोनों ने छिपकर शराब पीने का विचार किया। बगल के कमरे में उनके चाचा सो रहे थे, जो कि एक बड़े ही सदाचारी व्यक्ति थे। इसीलिए शराब पीना शुरु करने के पहले दोनों ने मिलकर निर्णय लिया, 'हम लोगों को जरा भी आवाज नहीं करनी है, नहीं तो चाचाजी जाग जाएंगे।
वे लोग शराब पीते हुए बार-बार कहते जा रहे थे, 'चुप रहो, नहीं तो चाचाजी जाग जाएंगे। इस प्रकार वे एक-दूसरे को चुप कराते रहे। धीरे-धीरे जब उनकी आवाज बढ़ी, तो चाचाजी की नींद खुल गई। वे उस कमरे में आए और उन्होंने सब कुछ देख लिया। हम लोग भी ठीक इन्हीं मतवालों की तरह ही 'विश्व बन्धुत्व ह-कहकर शोर मचाते रहते हैं। कहते हैं, 'हम सभी समान हैं, इसीलिए हमें एक सम्प्रदाय के रूप में संगठित हो जाना चाहिए। परन्तु ज्योंहि तुमने सम्प्रदाय का गठन किया, त्योंहि तुम समता के विरोधी हो जाते हो; और तुम्हारे लिए समता का कोई महत्व नहीं रह जाता।

मुसलमान लोग सार्वभौमिक भाईचारे की बातें करते हैं, परन्तु वास्तव में इसका परिणाम क्या निकलता है? क्या कारण है कि जो मुसलमान नहीं हैं, वह इस भाईचारे में शामिल नहीं हो सकता? बल्कि उसका गला काटे जाने की ही अधिक सम्भावना है; ईसाई भी विश्व-बन्धुत्व की बातें करते हैं; परन्तु जो ईसाई नहीं हैं, उसे निश्चित रूप से एक ऐसे स्थान में जाना होगा, जहां उसे अनन्तकाल तक आग में झुलसाया जाएगा।

निष्कर्षतः नर हो न निराश करो नर को यही भावना अपने मन में रखनी चाहिए और प्रकृति प्रदत हर वस्तुओं की सेवा देख - रेख अपने तरह अपनी संतानों की तरह अपने वस्तुओं की तरह ही करनी चाहिए। किसी से किसी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहिए यही विवेकानंद जी हमेशा कहते थे।
आपका अपना साथी
अमित बाबू
प्रयागराज
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