शिष्य शिक्षा और शिक्षक का संबंध
शिष्य शिक्षा और शिक्षक का संबंध
कहते हैं ना कि दुनिया में रंगों की कमी नहीं, कमी तो हममें है कि हम कम रंगों को जानते व पहचानते हैं। उसी भांति ए.के. बक्शी सर को भी दुनिया बहुरंगी, बहुआयामी सोच रखने वाले व सफल व्यक्ति के नाम से पहचानती है। यह पी.डी.एम यूनिवर्सिटी हरियाणा के कुलपति है, दो बार स्वर्ण पदक विजेता रहे बक्सी सर का अध्ययन क्षेत्र रसायन विज्ञान रहा है लेकिन कुछ सालों से यह शिक्षा के पठन-पाठन में मौजूद कमियों को दूर करने का प्रयत्न कर रहे हैं। काफी शोध व अध्ययन के बाद यह ई लर्निंग व मूक्स जैसी तकनीक को शिक्षा को और बेहतर बनाने में शामिल करना शामिल कर रहे हैं।
बक्शी सर की शिष्या डॉ. विमल रॉर जी का कहना है कि 'शिक्षा हर भारतीय के हाथों तक पहुंचे'। इसको ध्यान में रखते हुए बक्शी सर इसमें आने वाली चुनौतियों और समस्याओं को भी बताएं कि कैसे भारत की तकनीकी, संचार, नेटवर्क कमजोर है आज भी भारत की इंटरनेट स्पीड सबसे 7- 8mbps है आज भी उन पिछड़े व निम्न तबके के लोगों के पास एंड्रॉयड फोन नहीं है जिनको वास्तव में शिक्षा की जरूरत है जिनकी पहुंच कालेजों और स्कूलों तक नहीं है। इनका कहना है कि ऐसे विद्यार्थी या शिक्षक जो उपर्युक्त सुविधाएं रखते हैं उनके लिए हम MOOCS (Massive Open Online Course) के माध्यम से ऑडियो, विडियो क्लास लेक्चर फ्री में इंटरनेट पर मुहैया कराएंगे।
मूक्स में इंग्लिश कंट्री लिटरेचर से लेकर, वेब साइंस चांद तक शायद ही कोई विषय ऐसा हो जिसकी पढ़ाई मूक्स के ओपन ऑनलाइन कोर्सेस के जरिए नहीं हो सकता। बक्शी सर का कहना है कि अगर कोई शिक्षक भी कौशल रहित है तो वह भी मूक्स से लाभान्वित हो सकता है।
आज के इस जबरदस्त प्रतिस्पर्धा के दौर में विद्यार्थियों का कुछ इस तरह का हाल हो गया है कि वो चलती बस को दौड़ कर पकड़ना चाहता
है वो सिर्फ भाग रहा है दौड़ रहा है उसके साथ हजारों की संख्या में एक बहुत बड़ी भीड़ भी भाग रही है, उस एक बस को पकड़ने के लिए और सबको लगता है कि वह सबसे पहले उस बस को पकड़ लेंगे। बड़ा जरजर और कष्टकारी हाल है इस भारत के विद्यार्थियों का मानो जैसे जिज्ञासा ही खत्म हो गई हो सीखने की रचनात्मकता की। हमारी शिक्षा व्यवस्था ऊंची मार्क प्राप्त करने के लिए ज्यादा और कौशल विकास करने के लिए बहुत कम काम करती है।
आप कौशल की कमी का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि 1930 में सर सी.वी. रमन के बाद किसी को भी रचनात्मकता व विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार नहीं मिला जबकि आज 900 से अधिक यूनिवर्सिटी, 45000 कॉलेज और लगभग 1500000 शिक्षक हैं जो हर साल भारत सरकार को ऊंची मार्कशीट धारक, पिलर रूपी विद्यार्थी देते तो हैं पर वह कुछ ही साल में ढह जाता है और कोना पकड़ कर बैठ जाता है और कहता है मैं तो सुरक्षित हो गया भाई! मुझे 20 हजार की
नौकरी मिल गयी तो कोई कहता है की 30 हजार , तो कोई 40 हजार ये तो है आज के सफलता का मापक।
आज हम आपको कुछ सच्चाई
से अवगत कराते हैं- आज के अधिकतर विद्यार्थी व शिक्षकगढ़ में रचनात्मकता खत्म हो गई है, सीखने की जिज्ञासा में कमी आ गई है, ध्यान दीजिएगा सीखने और पढ़ने या रटने में अंतर होता है। किताबी ज्ञान जब तक व्यवहार में न उतर जाए तब तक हम उसे सीखना नहीं कह सकते। व्यावहारिक कार्य और ज्ञान जिसे हम प्रैक्टिकल नॉलेज कहते हैं भी बहुत कमजोर हो गया है। लोगों के प्रतिउत्तर में वो फिर चाहे अनस्कील शिक्षक हो या विद्यार्थी हो यह सुनने को मिलता है कि हम सीखना तो चाहते हैं मगर वक्त ही नहीं है, हर समय बेकार का बहाना बनाते रहते है।
सीखने की प्रक्रिया में 6 आधार स्तम्भ बनाया गया है जो क्रमशः है पहला चरण है ज्ञान का, दूसरा उस ज्ञान को समझना, तिसरा उसे लागू करना, चौथे चरण में उस ज्ञान का विश्लेषण करना है और उसके बाद पांचवें चरण में उसमे क्रमागत विकास करना है और अंतिम छठे चरण में हमें उस ज्ञान का रंग रूप आकार अपने ढंग से बनाना है और फिर निर्माण करना है। जैसे हमें भारत के पड़ोसी देशों के नाम का ज्ञान चाहिए तो ज्ञान को समझेंगे, उसके बाद उन देशों के बारे में पड़ेंगे, उसके बाद हम विश्लेषण करेंगे, फिर उन्हें एक क्रम में लाएंगे, उसके बाद अपने विवेकानुसार रचना कर डालेंगे जैसे मैंने बचपन में एम बी ए किया- ब से बांग्लादेश, च से चीन, प से पाकिस्तान, न से नेपाल, एम से म्यामार, बी से भूटान और अंत में ए से अफगानिस्तान लीजिए हो गई रचना।
एक सुपरिक्षित, शिक्षक के पास व्यवहारिक ज्ञान होना अति आवश्यक है, लेकिन आज के अधिकतर शिक्षक बस यही चाहते हैं कि मैं जिस विद्यार्थी को पढ़ाऊ वह ज्यादा से ज्यादा नंबरों से पास हो उन्हें बच्चे के मौलिक विचारों व रचनात्मक से कोई लेना देना नहीं वो जो कक्षा में पढ़ाए सब बच्चों को समझ में आया कि नहीं अगर किसी को समझ में नहीं आया तो वो उसी पुराने तरीके से समझा कर आगे यह कह कर बढ़ जाते हैं कि पाठ्यक्रम तुम्हारी वजह से पीछे ना हो जाए, फिर क्या कक्षा के सारे बच्चे उस बच्चे को ऐसे घूरने लगते हैं मानो उसने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो, अब वह शांत मायूस होकर कक्षा में बैठा रहता है उसे एक छोटी कड़ी समझ में न आने से पूरी कक्षा बोर लगने लगती है, तो ऐसे विद्यार्थियों के लिए हर स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थानों में एक अलग व्यवस्था होनी चाहिए जहां वह फ्रेंडली महसूस कर सकें और अपनी समस्या शिक्षक से साझा कर सके।
एक विद्यार्थी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उसके शिक्षक की गुणवत्ता, क्योंकि एक शिक्षक को विद्यार्थियों को आसेस करना है या उसके पहुंच तक पहुंचाना सिखाना होता है। इस तकनीकीकरण के दौर में दोषपूर्ण शिक्षा को त्याग ही देना चाहिए। शिक्षक अपनी कक्षा में व्याख्यानों को और स्मार्ट बना सकते हैं उसमें तकनीकी का सहारा लेकर जिसमें ऑडियो, विडियो और एनिमेशन लेक्चर को शामिल करके कक्षा की पढ़ाई व ज्ञानार्जन को और रोचक बना सकते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि हम सीखे कैसे? सीखना कैसे सीखना है? सीखने में मूक्स एक गेम चेन्जर जैसा साबित होगा क्योंकि यहां और कौशल रहित शिक्षक को कौशल युक्त बनाया जाता है। इस मूक्स जैसे प्लेटफार्म पर दुनिया भर का ज्ञान, कौशल विकास सरल तरीके से मुहैया कराया गया है।
जहां ऑनलाइन पढ़ाई के ढेर सारे फायदे हैं वहीं इसके कुछ नुकसान भी हैं। जैसे ही आप ऑनलाइन पढ़ाई के लिए नेट ऑन करते हैं वैसे ही सोशल मीडिया से आप जूड़ जाते हैं और आप भूल जाते हैं कि आप किस काम के लिए सोशल मीडिया या इंटरनेट पर आए थे वो भूल कर समय खराब करने वाली वेबसाइटों, फेसबुक, व्हाट्सएप एवं अन्य साइटों पर लग जाते है। निष्कर्षतः अगर आप ऑनलाइन स्टडी कर रहे हैं तो इन सब से दूर रहें या इन एप को अनइंस्टॉल करके स्टडी प्रारंभ करें।, ऐसा कुछ मूक्स के अनुभवी शिक्षकों का कहना है।
एक शिक्षक का उसकी विषय वस्तु पर पूर्ण पकड़ व समझ होनी चाहिए और कक्षा में पढ़ाते समय रचनात्मक तरीके से पता नहीं वह समझाने की कोशिश करनी चाहिए और हमेशा अपने बारे में शिष्यों से प्रतिक्रिया लेनी चाहिए और अपने ज्ञान और अनुभव में और विकास करना चाहिए। एक शिष्य का भी शिक्षक के प्रति यह कर्तव्य होना चाहिए कि कक्षा में जाने से पूर्व उस विषय वस्तु को पढ़ के जाय, गुरु का सम्मान करे, उन पर भरोसा करें और उनके प्रति अपनी तरफ से पूरी निष्ठा से प्रेम भाव व संवेदनशीलता का परिचय देता रहे।
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि अपने प्रथम गुरु माता- पिता के बाद एक शिक्षक का ही नंबर आता है जो एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं और अपने शिष्यों में क्रमवार विकास करके उनका सराहनीय व महानतम विकास कर डालते है।
कहते हैं ना कि दुनिया में रंगों की कमी नहीं, कमी तो हममें है कि हम कम रंगों को जानते व पहचानते हैं। उसी भांति ए.के. बक्शी सर को भी दुनिया बहुरंगी, बहुआयामी सोच रखने वाले व सफल व्यक्ति के नाम से पहचानती है। यह पी.डी.एम यूनिवर्सिटी हरियाणा के कुलपति है, दो बार स्वर्ण पदक विजेता रहे बक्सी सर का अध्ययन क्षेत्र रसायन विज्ञान रहा है लेकिन कुछ सालों से यह शिक्षा के पठन-पाठन में मौजूद कमियों को दूर करने का प्रयत्न कर रहे हैं। काफी शोध व अध्ययन के बाद यह ई लर्निंग व मूक्स जैसी तकनीक को शिक्षा को और बेहतर बनाने में शामिल करना शामिल कर रहे हैं।
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मूक्स में इंग्लिश कंट्री लिटरेचर से लेकर, वेब साइंस चांद तक शायद ही कोई विषय ऐसा हो जिसकी पढ़ाई मूक्स के ओपन ऑनलाइन कोर्सेस के जरिए नहीं हो सकता। बक्शी सर का कहना है कि अगर कोई शिक्षक भी कौशल रहित है तो वह भी मूक्स से लाभान्वित हो सकता है।
आज के इस जबरदस्त प्रतिस्पर्धा के दौर में विद्यार्थियों का कुछ इस तरह का हाल हो गया है कि वो चलती बस को दौड़ कर पकड़ना चाहता
है वो सिर्फ भाग रहा है दौड़ रहा है उसके साथ हजारों की संख्या में एक बहुत बड़ी भीड़ भी भाग रही है, उस एक बस को पकड़ने के लिए और सबको लगता है कि वह सबसे पहले उस बस को पकड़ लेंगे। बड़ा जरजर और कष्टकारी हाल है इस भारत के विद्यार्थियों का मानो जैसे जिज्ञासा ही खत्म हो गई हो सीखने की रचनात्मकता की। हमारी शिक्षा व्यवस्था ऊंची मार्क प्राप्त करने के लिए ज्यादा और कौशल विकास करने के लिए बहुत कम काम करती है।
आप कौशल की कमी का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि 1930 में सर सी.वी. रमन के बाद किसी को भी रचनात्मकता व विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार नहीं मिला जबकि आज 900 से अधिक यूनिवर्सिटी, 45000 कॉलेज और लगभग 1500000 शिक्षक हैं जो हर साल भारत सरकार को ऊंची मार्कशीट धारक, पिलर रूपी विद्यार्थी देते तो हैं पर वह कुछ ही साल में ढह जाता है और कोना पकड़ कर बैठ जाता है और कहता है मैं तो सुरक्षित हो गया भाई! मुझे 20 हजार की
नौकरी मिल गयी तो कोई कहता है की 30 हजार , तो कोई 40 हजार ये तो है आज के सफलता का मापक।
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से अवगत कराते हैं- आज के अधिकतर विद्यार्थी व शिक्षकगढ़ में रचनात्मकता खत्म हो गई है, सीखने की जिज्ञासा में कमी आ गई है, ध्यान दीजिएगा सीखने और पढ़ने या रटने में अंतर होता है। किताबी ज्ञान जब तक व्यवहार में न उतर जाए तब तक हम उसे सीखना नहीं कह सकते। व्यावहारिक कार्य और ज्ञान जिसे हम प्रैक्टिकल नॉलेज कहते हैं भी बहुत कमजोर हो गया है। लोगों के प्रतिउत्तर में वो फिर चाहे अनस्कील शिक्षक हो या विद्यार्थी हो यह सुनने को मिलता है कि हम सीखना तो चाहते हैं मगर वक्त ही नहीं है, हर समय बेकार का बहाना बनाते रहते है।
सीखने की प्रक्रिया में 6 आधार स्तम्भ बनाया गया है जो क्रमशः है पहला चरण है ज्ञान का, दूसरा उस ज्ञान को समझना, तिसरा उसे लागू करना, चौथे चरण में उस ज्ञान का विश्लेषण करना है और उसके बाद पांचवें चरण में उसमे क्रमागत विकास करना है और अंतिम छठे चरण में हमें उस ज्ञान का रंग रूप आकार अपने ढंग से बनाना है और फिर निर्माण करना है। जैसे हमें भारत के पड़ोसी देशों के नाम का ज्ञान चाहिए तो ज्ञान को समझेंगे, उसके बाद उन देशों के बारे में पड़ेंगे, उसके बाद हम विश्लेषण करेंगे, फिर उन्हें एक क्रम में लाएंगे, उसके बाद अपने विवेकानुसार रचना कर डालेंगे जैसे मैंने बचपन में एम बी ए किया- ब से बांग्लादेश, च से चीन, प से पाकिस्तान, न से नेपाल, एम से म्यामार, बी से भूटान और अंत में ए से अफगानिस्तान लीजिए हो गई रचना।
एक सुपरिक्षित, शिक्षक के पास व्यवहारिक ज्ञान होना अति आवश्यक है, लेकिन आज के अधिकतर शिक्षक बस यही चाहते हैं कि मैं जिस विद्यार्थी को पढ़ाऊ वह ज्यादा से ज्यादा नंबरों से पास हो उन्हें बच्चे के मौलिक विचारों व रचनात्मक से कोई लेना देना नहीं वो जो कक्षा में पढ़ाए सब बच्चों को समझ में आया कि नहीं अगर किसी को समझ में नहीं आया तो वो उसी पुराने तरीके से समझा कर आगे यह कह कर बढ़ जाते हैं कि पाठ्यक्रम तुम्हारी वजह से पीछे ना हो जाए, फिर क्या कक्षा के सारे बच्चे उस बच्चे को ऐसे घूरने लगते हैं मानो उसने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो, अब वह शांत मायूस होकर कक्षा में बैठा रहता है उसे एक छोटी कड़ी समझ में न आने से पूरी कक्षा बोर लगने लगती है, तो ऐसे विद्यार्थियों के लिए हर स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थानों में एक अलग व्यवस्था होनी चाहिए जहां वह फ्रेंडली महसूस कर सकें और अपनी समस्या शिक्षक से साझा कर सके।
एक विद्यार्थी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उसके शिक्षक की गुणवत्ता, क्योंकि एक शिक्षक को विद्यार्थियों को आसेस करना है या उसके पहुंच तक पहुंचाना सिखाना होता है। इस तकनीकीकरण के दौर में दोषपूर्ण शिक्षा को त्याग ही देना चाहिए। शिक्षक अपनी कक्षा में व्याख्यानों को और स्मार्ट बना सकते हैं उसमें तकनीकी का सहारा लेकर जिसमें ऑडियो, विडियो और एनिमेशन लेक्चर को शामिल करके कक्षा की पढ़ाई व ज्ञानार्जन को और रोचक बना सकते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि हम सीखे कैसे? सीखना कैसे सीखना है? सीखने में मूक्स एक गेम चेन्जर जैसा साबित होगा क्योंकि यहां और कौशल रहित शिक्षक को कौशल युक्त बनाया जाता है। इस मूक्स जैसे प्लेटफार्म पर दुनिया भर का ज्ञान, कौशल विकास सरल तरीके से मुहैया कराया गया है।
जहां ऑनलाइन पढ़ाई के ढेर सारे फायदे हैं वहीं इसके कुछ नुकसान भी हैं। जैसे ही आप ऑनलाइन पढ़ाई के लिए नेट ऑन करते हैं वैसे ही सोशल मीडिया से आप जूड़ जाते हैं और आप भूल जाते हैं कि आप किस काम के लिए सोशल मीडिया या इंटरनेट पर आए थे वो भूल कर समय खराब करने वाली वेबसाइटों, फेसबुक, व्हाट्सएप एवं अन्य साइटों पर लग जाते है। निष्कर्षतः अगर आप ऑनलाइन स्टडी कर रहे हैं तो इन सब से दूर रहें या इन एप को अनइंस्टॉल करके स्टडी प्रारंभ करें।, ऐसा कुछ मूक्स के अनुभवी शिक्षकों का कहना है।
एक शिक्षक का उसकी विषय वस्तु पर पूर्ण पकड़ व समझ होनी चाहिए और कक्षा में पढ़ाते समय रचनात्मक तरीके से पता नहीं वह समझाने की कोशिश करनी चाहिए और हमेशा अपने बारे में शिष्यों से प्रतिक्रिया लेनी चाहिए और अपने ज्ञान और अनुभव में और विकास करना चाहिए। एक शिष्य का भी शिक्षक के प्रति यह कर्तव्य होना चाहिए कि कक्षा में जाने से पूर्व उस विषय वस्तु को पढ़ के जाय, गुरु का सम्मान करे, उन पर भरोसा करें और उनके प्रति अपनी तरफ से पूरी निष्ठा से प्रेम भाव व संवेदनशीलता का परिचय देता रहे।
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि अपने प्रथम गुरु माता- पिता के बाद एक शिक्षक का ही नंबर आता है जो एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं और अपने शिष्यों में क्रमवार विकास करके उनका सराहनीय व महानतम विकास कर डालते है।
आपका अपना साथी
अमित बाबू
प्रयागराज
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